वंदेमातरम के महत्व और उस पर चल रही राजनीति पर एक आम आदमी के नजरिये और निजी अनुभव से मजेदार विश्लेषण
पिछले दिनों चिट्ठाकारों ने खूब लिखा कि वो छुट्टी का दिन कैसे बिताते हैं, हमें कोई छुट्टी का दिन नहीं मिलता। शनिवार और रविवार मैं और दिनों से भी ज्यादा व्यस्त रहता हूं। हां आज का दिन मैंने अपने निजी कामों के लिये रखा था। सुबह देखा तो पूरे चिट्ठा जगत पर वंदेमातरम का ही रंग छाया था। मूड तो कल जीतू भाई और पंकज भाई ने ही बना दिया था। मैं सोचता रहा कि एक गीत कैसे इतना शक्तीशाली हो सकता है, क्या छिपा है इस गीत के पीछॆ जो इतनी शक्ति देता था आजादी के सिपाहियों को। आज के संदर्भों में कितना प्रासांगिक है यह गीत?
सुबह समाचारों में देखा भोपाल के मदरसे में वंदेमातरम गाया जा रहा है, फिर वाराणसी की एक मुस्लिम लड़की को कहते हुए देखा ” मजह्ब का विकल्प हो सकता है, देश का कोई विकल्प नही होता, हम गांयेंगे वंदे मातरम” मैं देख रहा था कैसे एक बालिका इन राजनेताओं के मुंह पर तमाचा लगा रही थी। मन बहुत खूश हुआ और मैं मन ही मन वंदेमातरम गुनगुनाता हुआ घर से निकल पड़ा।
मेरा मोबाईल रात से खराब पड़ा था, सबसे पहले इसे ही ठीक करवाना था राजोरी गार्डन से। वहां पहुंचा तो बाजार बंद था तीन बजे तक के लिये, दिल्ली में चल रहे सीलिंग अभियान के विरोध में। यानि तीन बजे से पहले मरा फोन जिंदा नहीं हो सकता। बाजर बंद था मगर बाजार में लाउडस्पीकर पर लता जी का गाया आनंद मठ का वंदे मातरम चल रहा था
” सप्त कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
निसप्त कोटि भुजैब्रुत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीं नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीं मातरम् ॥ वन्दे मातरम्…”
अब मुझे जाना था गाड़ी ठीक करवाने मोती नगर। पिछले सप्ताह हुए एक छोटे से एक्सीडेंट में बोनट ठुक गया था।
प्रतियोगिता के जमाने में हर कोई कितने सम्मान और प्यार से अपने ग्राहक से पेश आता है, वो बात अलग है कि जेब ग्राहक की ही कटती है। दो तीन दिन पहले समाचार पत्र में एक लेख पढ़ा था कि किस प्रकार नई चली एयरलाईनस में पहली बार सफर करने वाले यात्री एयर बालाओं को परेशान करते हैं और कैसे ये एयर बालाएं मुस्कुरा कर इन यात्रियों को शिकायत का मौका नहीं देतीं। जो सज्जन मेरी गाड़ी की फाईल बना रहे थे उनका नाम था ईरफान। चेहेरे पर मुसकान और मीठी भाषा। पता नहीं चला कि यह उनका स्वभाव था या पेशे की मजबूरी।
मेरे मन में वही गीत चल रहा था
“सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् ।
सुखदां वरदां मातरम् ॥ वन्दे मातरम्…”
वही एक सरदार जी भी बैठे थे। बात गाड़ियों की सेल से शुरु हुई और, श्राधों,चंद्र ग्रहन से होते वंदे मातरम पर आ गई। सरदरजी ने ईरफान से कह दिया “आप तो नहीं गाओगे?” मुस्कुराता हुआ चेहरा एकदम गुस्से से तमतमाने लगा “क्यूं नहीं गाउंगा? सबसे पहले गाउंगा मैं”
गाड़ी ठीक होने को वहीं छोड मैं बाहर आया। सड़क पर पैदल ही चल पड़ा मैट्रो पकड़ने के लिये। क्नाट प्लेस में कुछ काम करवाना था। डेढ़ बज गया था, सूरज तप रहा था। मोती नगर चोराहे पर अभी मैट्रो का काम पूरा नहीं हुआ और सड़क पर एक पुल भी बन रहा है जिससे धूल भी बहुत उड़ रही थी। मेरे मन में वही चल रहा था
“सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्
शस्य श्यामलां मातरम्…… “
मैट्रो जब झंडेवालान से गुजरती है तो सामने वीडियोकोन टावर नजर आती है जहां आजतक चैनल का ऑफिस है। आपने भी कई बार आजतक पर समाचार वाचक के पीछे मैट्रो को निकलते हुए देखा होगा। मुझे याद आ गया रात कैसे आजतक पर अब्दुल करीम तेलगी से नारको एनालिसिस में नीम बेहोशी में सवाल पुछ रहे थे। महिला डाक्टर बार बार तेलगी का गाल थपथपाती और पूछती, “टू व्हूम यू पेड द मनी तेलगी?” (तुमने किसे पैसे दिये तेलगी?) और तेलगी सम्मोहन में पड़ा, बार बार सूखे होंठों पर जीभ फेरने की कोशिश करता।
क्नाट प्लेस के जिस ऑफिस में मैं गया वहां रिसेप्शन पर टीवी चल रहा था और आजतक चैनल ही चल रहा था, नीचे न्यूज फ्लैश आ रहा था कि बीजेपी वंदे मातरम के मुद्दे को देश भर में उठायेगी और स्क्रीन पर ऊपर एक विज्ञापन में एक व्यक्ति एक बुजूर्ग मुसलमान से बार बार पान पराग मांग मांग कर खा रहा था। मै सोच रहा था कि हमारे कुछ राजनीतिबाज जब भ्रष्टाचार करते हैं और तेलगी जैसों से मांग मांग कर पैसे खाते हैं और वंदे मातरम के नाम पर अपने वोट बैंक का गलत मुद्दों पर समर्थन करते हैं……।
शाम के चार बज रहे थे, मैं मोबाईल ठीक करवा रजोरी गार्डन बाजार से वापिस आ रहा था, बाजार में अभी भी वंदे मातरम चल रहा था मगर मेरे दिमाग में आजतक पर चलता वो सीडी चल रहा था “टू व्हूम यू पेड द मनी तेलगी……..?”
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