हट सकती है करों में छूट – २ हमारे देश में यही होता है कि आम आदमी को तो टैक्स देने पड़ते है और अमीर कई तरह की छूटों का लाभ लेकर टैक्स देने से बच निकलते हैं। सर्विस टैक्स एक ऐसा टैक्स है जो कि सरकार ने लगभग 95 प्रकार की सेवाओं पर लगाया हुआ है। इनमें कई सेवाएं जैसे कि मोबाईल तथा फिक्सड फोन, कुरियर, तार भेजना, केबल, स्कूटर का बीमा, रेल टिकट एजेंट, ड्राईक्लीनिंग जैसी अन्य कई सेवाएं ऐसी हैं जो कि आम आदमी के प्रयोग की हैं।
यदि आप माह में पांच हजार रुपये इन 95 सेवाओं पर खर्चते हैं तो 12.24% की दर से 612 रु हर माह सरकार को सर्विस टैक्स देते हैं। यानि साल में 7344 रु। हैरानी की बात यह है कि जहां कम्पनियों और अमीरों पर लगने वाले टैक्स घट रहे हैं, सर्विस टैक्स जो कि 1994 में केवल 5% की दर से शुरू किया गया था, बढ़ कर 12.24% हो गया। यही नहीं लगातार कर योग्य सेवाओं का दायरा भी बढता जा रहा है। अब तो शायद ही कोई सेवा बची हो जो कि करों के दायरे में न आई हो।
जैसा कि मैंने अपने पिछले लेख हट सकती है करों में छूट में लिखा था 2006-07 में सरकार को विभिन्न छूटों से राजस्व हानि हुई 1,58,661 करोड़ रुपये। इसमें से बहुत बड़ा भाग बचाया बड़ी कम्पनियों ने। निजी करदाताओं को दी जाने वाली छूट से हुई हानी केवल 11,695 करोड़ रुपये ही थी।
निजी करदाताओं को जो छूट मिलती हैं उनमें शामिल हैं गृह ऋण पर दी जाने वाली छूट, विभिन्न बचत योजनाओं में निवेश पर छूट तथा कृषि आय पर छूट।
कृषि आय पर दी जाने वाली छूट को शायद ही सरकार छेड़ पाये। आने वाले राज्यों के चुनावों को देखते हुए तो यह और भी कठिन लगता है। यह एक ऐसा विषय है जिस पर अलग से एक लेख लिखा जा सकता है, वैसे साथी चिट्ठाकर इस बारे में क्या सोचते हैं यह जानना रुचिकर होगा।
हाउसिंग लोन पर करों में छूट देने से हाउसिंग को बढ़ावा मिलता है। इससे अर्थव्यव्स्था के मूल घटकों जैसे कि सीमेंट तथा स्टील क्षेत्रों के साथ साथ बैंकिंग को भी बढ़ावा मिलता है। कुछ हजार करोड़ बचाने के लिये हाउसिंग बूम को रोकने का काम सरकार कर पाती है या नहीं आने वाले बजट में यह देखना रुचिकर होगा।
छोटे करदाताओं को बचत योजनाओं में निवेश पर दी जाने वाली छूट नौकरीपेशा लोगों के लिये परेशानी का कारण हो सकती है। हो सकता है कि अभी निवेश करने पर मिलने वाली छूट जारी रहे मगर इन निवेशों में मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम पर टैक्स लगना शुरू हो जाये।
यानि लगता है कि कुल मिला सरकार को अधिक से अधिक टैक्स जुटाने के लिये आम आदमी ही मिलेगा तथा बड़े लोग एवम कम्पनियां बचते ही रहेंगे।
दुनिया में कई देश हैं जहां टैक्स या तो हैं ही नहीं अथवा इतने कम हैं कि इन देशों को टैक्स हैवन कहा जाता है। इनके बारे में अंग्रेजी विकीपीडिया पर यहां पढ़ें।
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