बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं। उनकी आवश्यकताएं भौतिक तो होती ही हैं, भावनात्मक ज्यादा होती हैं। भावनात्मक इस लिये क्योंकि आजकी भागती दौड़ती दुनिया में हर पिता का ज्यादा जोर अपने बच्चों की भौतिक आवशकताओं को पूरा करने में रहता है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि हम केवल अच्छे कपड़े, घर पर बच्चों के लिये कंप्यूटर, अच्छे स्कूल, महीने में एक या दो बार घर से बाहर खाना और जेब खर्च दे कर यह सोच लेते हैं कि हम अपना धर्म बहुत अच्छी तरह निभा रहे हैं?
सप्ताह में छ्ह दिन काम में व्यस्त और इतवार को पूरा दिन सो कर थकान मिटाओ।
क्या बच्चों को अपने पिता के साथ बिताने के लिये बेहतर खुशनुमा समय मिल पाता है? क्या हमारे बच्चे हमें अपना सबसे अच्छा दोस्त समझते हैं? क्या हमारे बच्चे अपने मन में उठी हर नई भावना हम से सहजता से बांट सकते हैं? क्या बच्चे में यह विश्वास है कि जब भी उसे कोई परेशानी होगी तो मेरे पिता मेरे लिये सब ठीक कर देंगे।
हर माँ और पिता को अपने बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहिए. उनसे बातें करनी चाहियें. किस्से कहानी भी सुनने सुनाने चाहियें. बच्चों का मन टटोलते रहा कीजिये. बच्चों के साथ बच्चे बनिए और उन्हें क्वालिटी टाइम दीजिये.
बच्चा आपको दोस्त समझे और इस बात का उसे हमेशा इत्मीनान रहना चाहिए कि यदि उसे कभी भी कोई भी किसी भी प्रकार की परेशानी सामने आये तो उस परेशानी का सामना करने के लिए मेरे माता पिता मेरा साथ देने के लिए हमेशा मेरे साथ हैं.
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