आईना ब्लॉग पर पॉपुलर मुन्नाभाई श्रेणी में एक और पोस्ट सरकिट का भी ब्लॉग आज प्रस्तुत है. उम्मीद है आपको पसंद आयेगा. मुन्नाभाई श्रेणी के बाकी पोस्ट यदि आपने ना पढ़े हों तो जरूर पढ़ें, आपको पसंद आयेंगे.
‘हैलो मुन्नाभाई, कैसे हो भाई!”
“अपुन मजे में हैं, कैसे फोन किया सरकिट?”
“भाई, अब तो तुम्हे चिट्ठा लिखते हुए एक साल से ज्यादा हो गया, अपुन का भी चिट्ठा बनवा दो ना।”
“अरे सर्किट तुम क्या करोगे चिट्ठा बना कर, पहलेइच इदर चिट्ठों की क्वालिटी पर कोश्चन लग रेले हैं।”
“क्यों भाई, चिट्ठा है कि शादी का सूट जो सिर्फ रीड एंड टेलर की क्वालिटी के कपड़े सेइच बनेगा?”
“अरे नहीं सरकिट, कहने का मतलब है कि वो क्या कहते हैं कि भाषा उच्च्च…. होनी चाहिये और सब्जेक्ट सीरियस।”
“पर भाई एक चिड़िया को तो चहकना सीखने के लिये बड़ी बड़ी किताबें नहीं पढ़नी पड़तीं। क्या कोयल की कूक की भी कोई क्वालिटी होती है?”
“ओफ्फ! तुम से कौन जीत सका है, कहां बनाना है चिट्ठा?”
“भाई चंपा के बगल में बनवा दो ना।”
“अरे मैंने पूछा वर्डप्रैस या ब्लागस्पाट?”
“ये सब अपुन को नहीं पता भाई, बस चंपा के बगल में होना चाहिये, अपुन हर रोज उसको आते जाते देखेंगा।”
“सरकिट तूं तो अईसे कह रहा जैसे चिट्ठा नहीं, मुम्बई में खोली बनवा रहा है। ये वर्चुअल दुनिया है, यहां कोइ अगल बगल नहीं होता। न कोई प्लाट, न कीमत, न भाड़ा।”
“क्या कहा भाई? यहां किसका वर चुहल करता है? ”
“सरकिट ! तेरे कु समझाना भोत मुश्किल काम है। वर्चुअल बोले तो आभासी।”
“भाई मेरे कु कुछ समज नहीं आ रहा जरा ठीक से समझाओ ना।”
“देखो सरकिट, जईसे अपुन को बापू दिखता था ना मगर बापू होता नहीं था, वैसेईच चिट्ठे दिखते हैं मगर चिट्ठे होते नहीं हैं, हमको बस इनके होने का आभास होता है। एक पल स्क्रीन पर दिखे, दूसरे पल गायब।”
“बड़ी अजीब बात है भाई, अगर ये सब आभासी दुनिया है, न कोई प्लाट, न कीमत, न भाड़ा। फिर यहां इतनी लड़ाईयां क्यों होती हैं?”
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