हट सकती है करों में छूट

हट सकती है करों में छूट

जल्द ही बजट आने वाला है। बजट के आने तक हम चर्चा करेंगे कि बजट में क्या होने की संभावना है और यह समझने की कोशिश करेंगे कि इसका हमारे ऊपर क्या असर हो सकता है एक निवेशक के रूप में, एक करदाता के रूप में तथा एक उपभोक्ता के रूप में।
‘आईना’ के इन पन्नों पर हम बजट तक इस सब की चर्चा करेंगे तथा बजट के बाद कोशिश करेंगे वास्तविक बजट प्रस्तावों को समझने की। बजट में क्या होगा इसका पहले से अनुमान लगाना बहुत कठिन होता है मगर प्रधान मंत्री तथा वित्त मंत्री के होंठों को पढ़ कर संभावित बदलावों के अनुमान लगाये जा सकते हैं।

प्रधान मंत्री जी ने हाल ही में कहा कि करों को तर्क संगत बनाने के लिये करों में दी जाने वाली छूटों को हटाने का समय आ गया है। इससे हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि करों में दी जाने वाली भिन्न प्रकार की कर रियायतें बजट में हट सकती हैं। बजट से पहले दिये जाने वाले एस प्रकार के बयानों के केवल शाब्दिक अर्थों को ही नहीं समझना चाहिये अपितु इससे जुड़े अन्य पहलूओं पर भी विचार किया जाना चाहिये। जबकी बजट को पूर्णयता गोपनीय रखा जाता है, बजट पूर्व इस प्रकार की इशारेबाजी के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। हो सकता है कि सरकार कुछ बड़े परिवर्तन करना चाहती है और अचानक हुई घोषणा से लोगों को अप्रत्याशित झटका न लगे इसलियये यह इशारा किया गया। कई बार इस प्रकार के बयान लोगों कि राय जानने के लिये भी दिये जाते हैं जिससे अंतिम फैसला लेने में लोगों कि राय को भी शामिल किया जा सके। (वैसे सरकारें तब तक आमराय को इतना महत्व नहीं देतीं जबतक कि इससे उन्हें कोई राजनैतिक लाभ न हो) । क्योंकि आम चुनाव अभी दो वर्ष दूर हैं, तो किसी लोक लुभावन बजट की उम्मीद वित्त मंत्री जी से न करें। इसके विपरीत सरकार के पास यह आखिरी मौका होगा कुछ कड़वे निर्णय लेने का।

यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि सरकारें यदि कोई अच्छी घॊषणा करनी हो तो छिपा कर रखती हैं तथा बजट से पहले हमेशा इस प्रकार के बयान देने से बचतीं हैं जिनसे आम लोगों को अथवा उद्योगों या पूंजी बाजारों को बजट से बहुत अधिक सकरात्मक उम्मीदें हो जायें, क्यों कि अगर बजट इन सब की उम्मीदों पर खरा न उतरे (और ऐसा हमेशा होता है) तो इसकी नकरात्मक प्रतिक्रिया (जैसे शेयर बाजार में गिरावट) भी हो सकती है।

तो आइये प्रधानमंत्री जी कि इस बात को समझें और यदि ऐसा हुआ तो इसका क्या असर होगा इसे भी समझने की कोशिश करें। सबसे पहले उद्योगों द्वारा दिये जाने वाले करों की बात करते हैं। पिछले वर्ष वित्तमंत्री जी ने बजट पेश करते हुए करों में 19.3% की वृद्धी का अनुमान लगाया था। आगामी 28 फरवरी को जब वित्तमंत्री जी बजट पेश करेंगे तो अपने ही अनुमानों से 20.000 करोड़ रु अघिक एकत्र कर चुके होंगे। यह सब संभव होगा अर्थवयवस्था में होते तेज विकास के कारण। अब यदि सरकार इतना अधिक धन इकट्ठा कर रही है तो करों में छूट वापिस क्यों ली जा रही है। ऐसा लगता है कि सरकार छूटों को हटा कर करों की दरों को भी कम करना चाहती है जिससे करों की गणना आसान हो जाये तथा दरें तर्कसंगत और इसके साथ ही कंपनियां करों मे छूट की आड़ में टैक्स देने से बचती न रहें।

2006-07 में करों से राजस्व आय थी 3,17,733 करोड़ रुपये तथा विभिन्न छूटों से राजस्व हानि थी 1,58,661 करोड़ रुपये। यानि लगभग 50%|
करों से छूट हटा लेने का अर्थ होगा कंपनियां अपने लाभ से सरकार को अधिक कर देंगी जिससे उनके पास शेयरधरकों को दिये जाने वाले लभांश में कमी होगी। इसका अधिक असर बड़ी कंपनियों पर पड़ेगा।

करों की दरों में कमी का अर्थ होगा कंपनियों के पास लभांश देने के लिये तथा विस्तार करने के लिये अधिक धन। इसका व्यापक सकरात्मक असर होगा तथा उम्मीद है कि बाजार हर्ष के साथ इसका स्वागत करेंगे।
इससे उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में भी कमी आने की संभावना है।

अगले लेख में हम चर्चा करेंगे निजी आयकर में छूट के हटने से होने वाले प्रभावों की ।
(आंकड़े आज की टाइम्स ऑफ ईंडिया से)

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Comments

3 responses to “हट सकती है करों में छूट”

  1. अच्छी और सार्थक चर्चा शुरु की है, बधाई. अगले लेख का इंतजार रहेगा.

  2. ravindra Avatar
    ravindra

    Apke agale lekh ki pratiksha mer ejaise naye naye fanse praniyon ko jayda hi hai….

  3. जगदीश जी, बढ़िया लिखे हैं। वैसे वो पूँजी वाला ब्लॉग काहे सूना पड़ा है? इस तरह की पोस्ट आदि तो आपको वहाँ लिखनी चाहिए, नहीं? :) खैर यह आप जाने कि क्या कहाँ पोस्ट करना है, लेकिन तरकीबें और नुस्खे आदि पूँजी वाले ब्लॉग पर बताते रहिए ताकि हम जैसों का ज्ञानवर्धन होता रहे। :)

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