Category: समाज
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पारसी थियेटर, मुग़ले आज़म और माचिस की तीलियां
कुछ दिनों से टीवी पर खूब फिल्में देखी जा रही हैं। हर शाम समाचार चैनलों या इंटरनेट पर समय बिताने के बजाय कुछ अच्छी फिल्में देखने की कोशिश कर रहा हूं। परसों टीवी पर मुग़लेआज़म देखी। नयी तकनीक से इसे पूरी तरह रंगीन और डिजिटल सर्रांउंड साउंड में बना दिया गया है। फिल्म के भव्य…
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नीली रेखाओं और लाल चेहरों वाला शहर
आप लोग सोचते होंगे कि दिल्ली के लोग कैसे इतने खौफ में जीते होंगे। एक तरफ लाल चेहरे वाले बंदरों का आतंक और दूसरी तरफ नीली रेखाओं वाली बसों का आंतंक। मगर दिल्ली के लोग बहुत ही व्यावाहारिक हैं। हर हालात में अपने को ढाल लेते हैं। सीख जाते हैं। दिल्ली के केंद्र में एक…
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पुनर्जन्म हो यदि मेरा !
दिल्ली से सटे नॉएडा के निठारी में एक दिल को दहला देने वाला काण्ड हो गया. आये दिन यहाँ बच्चे गायब होने की खबर आती. बाद में बच्चों के विभात्स्व तरीके से मारे जाने के किस्से सुनाने में आये. आपने अमिताभ जी को उत्तरप्रदेश के लिये एक विज्ञापन में बोलते हुए देखा होगा। यदि यही…
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धुंधलकों में छिपा सच
शशि भाई और बुल्लेशाह ने जब काबुल एक्सप्रैस के बारे में लिखा तो स्वंय को फिल्म देखने से रोक नहीं पाया। सच कहूं तो शशि भाई की इन पंक्तियों ने फिल्म देखने को मजबूर किया। “यह फिल्म बेहद साफ-सुथरी फिल्म. फिल्म में मानवीय संवेदनाओं की बात की गईं हैं. एक लाइन में बस यही कहना…
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….फिर भी मेरा भारत महान
“पापा ये मोबाईल से सूरज का फोटो लेने पर इसमें काला धब्बा क्यों आने लगता है?” मेरी बेटी गाड़ी में बैठी मोबाईल से सूरज का फोटो लेने की कोशिश कर रही थी। “पता नहीं बेटा, इसका कोई संईटिफिक रीजन (वैज्ञानिक कारण) जरुर होगा।”मगर मेरी आंखों के सामने तो सूरज अपनी पूरी चमक के साथ मौजूद…
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मेरा मन धक से रह जाता है…….
हाथ मूंह धो कर खाने की टेबल पर पहुंचा तो ह्ल्के से दिल धक से रह गया। आज फिर भिंडी की सब्जी बनी थी। बिल्कुल जैसे उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हों और वंदे मातरम जैसा मुद्दा राजनैतिक दलों को मिल जाये तो दिल थोड़ा धक से रह जाता है। मैं जानता था कि…
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पापा मुझे प्यार हो गया है
सिंडरेला की कहानी तो सभी ने सुनी होगी. यहाँ आज हम रिवर्स सिंडरेला सिंडरोम की बात कर रहे हैं. आज रेडियो मिर्ची पर दिल्ली के मनौवैज्ञानिक डा. संजय चुग जानकारी दे रहे थे एक मानसिक परेशानी के बारे में जिसका नाम है रिवर्स सिंडरेला सिंडरोम (Reverse Cinderella syndrome)। यह परेशानी उन लड़कियों को हो सकती…
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कृष्णा टु सुदामा “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू”-२
अमित जी ने मेरी पिछली पोस्ट “कृष्णा टु सुदामा “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू” के जवाब में एक किस्सा दिया है कि किस प्रकार महिलाओं को बस में सीट देने के बाद आभार तक व्यक्त नहीं करतीं। अमित जी लिखते हैं पर बीते ज़माने की किसी महिला को यदि सीट दी जाती, तो आभार प्रकट…
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कृष्णा टु सुदामा “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू”
रीडर्स डाइजेस्ट पत्रिका ने मुंबई को अशिष्ट नागरिको का शहर बताया है। अपने चिट्ठाकारों ने इतना कुछ लिख दिया इस विषय पर कि पिछली अनुगूंज पर भी इतना नहीं लिखा। मेरा मानना यह है कि इस प्रकार के सर्वे वैज्ञानिक तरीके से नहीं कराए जाते इसलिए यह विश्वसनीय नहीं होते। जब चुनाव के वक्त हमारे…
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संवेदनशील बच्चे
बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं। उनकी आवश्यकताएं भौतिक तो होती ही हैं, भावनात्मक ज्यादा होती हैं। भावनात्मक इस लिये क्योंकि आजकी भागती दौड़ती दुनिया में हर पिता का ज्यादा जोर अपने बच्चों की भौतिक आवशकताओं को पूरा करने में रहता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम केवल अच्छे कपड़े, घर पर बच्चों के लिये…