Category: वैचारिक
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नीली रेखाओं और लाल चेहरों वाला शहर
आप लोग सोचते होंगे कि दिल्ली के लोग कैसे इतने खौफ में जीते होंगे। एक तरफ लाल चेहरे वाले बंदरों का आतंक और दूसरी तरफ नीली रेखाओं वाली बसों का आंतंक। मगर दिल्ली के लोग बहुत ही व्यावाहारिक हैं। हर हालात में अपने को ढाल लेते हैं। सीख जाते हैं। दिल्ली के केंद्र में एक…
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मानव, बुब्बू और टिम्मी
बच्चों की बातें भी कितनी मासूम होती हैं, हम बड़ों की दुनिया से एकदम अलग। मानव मेरा सात वर्षिय बेटा है। बुब्बू उसका कबूतर भाई है तथा छोटा सा पिल्ला टिम्मी हमारे परिवार का सदस्य। छोटा सा पिल्ला टिम्मी कोई बीस पच्चीस दिन पहले न जाने कहां से आकर हमारे अहाते में घुस गया। बच्चों…
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ओये गुरू……
अनूप जी ने एक बार चिट्ठाचर्चा में लिखा था सबेरे से बांचते रहे अखबार, चवन्नी भर सरक गया इतवार. आप सब के चिट्ठे बांचते बांचते और अपना लिखते लिखते पूरा 2006 साल ही सरक गया। आज जब साल 2006 जा रहा है तो सोचा पूरे साल के घटनाक्रम पर एक नजर डाल ली जाये। मगर…
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केवल व्यस्कों के लिये संसद
केवल व्यस्कों के लिये संसद आपको याद है दूरदर्शन का वो जमाना जब चित्रहार में हीरो और हिरोईन नजदीक आते (नहीं नहीं आने को होते) तो अचानक स्क्रीन पर कभी पंछी उड़ते नजर आने लगते, झरने नजर आने लगते या कभी हिलते पेड़ नजर आने लगते। बेचारा दूरदर्शन का सरकारी बाबू, हर बुधवार सुबह सुबह…
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क्या इतनी सिंपल सी बात गोवरंमेंट को समझ नहीं आती?
क्या इतनी सिंपल सी बात गोवरंमेंट को समझ नहीं आती? मेरी आठवीं में पढ़ने वाली बेटी ने आज पढ़ते पढ़ते अचानक पूछ लिया: “पापा, एक छोटा सा फ्लैट बनाने में कितनी लागत आयेगी?” “यही कोई दॊ लाख रुपये, क्यों?” “क्या गोवरंमेंट के पास इतने पैसे नहीं होते कि स्लम में रहने वाले सब लोगों को…
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साठ साल के बूढ़े या साठ साल के जवान
“तो क्या तुम अपनी मां किसी दूसरे को दे दोगे?” मेरी आंखें गुस्से से लाल हो गईं और चेहरा तमतमाने लगा। उन्नीस साल का था मैं। नयी नयी नौकरी और दूसरा तीसरा दिन। कायदे से तो मुझे चुपचाप रहना चाहिये था मगर अगले ने बात ही कुछ ऎसी की कि मुझे बहुत गुस्सा आ गया।…
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गरीब के सपने और सरकार की तोता रटंत
दिल्ली में ऑटो पर बैठना हो तो यह मान कर चलना पड़ेगा कि अधिकतर ये लोग फालतू पैसे मांगते हैं और कई बार बद्तमीजी भी करते हैं। मगर उस दिन जो अनुभव मेरे साथ हुआ आपको भी बताता हूं। दोपहर के समय प्रगती मैदान से निकला तो ऑटो ढूंढ रहा था बाराखंबा रोड जाने के…
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एक अदद भगवान की जरूरत है
हमारा समाज नित नए भगवान गढ़ता रहता है. हमारे यहां सब से ज्यादा देवी देवता हैं. हमारे देश में सांप से लेकर नदियों तक और सूरज से लेकर अमिताभ बच्चन तक की पूजा होती है. फिर भी हम नये नये भगवान बनाने की कोशिश करते रहते हैं. “क्रिकेट हमारा धर्म है और सचिन हमारा भगवान”…