हाथ मूंह धो कर खाने की टेबल पर पहुंचा तो ह्ल्के से दिल धक से रह गया। आज फिर भिंडी की सब्जी बनी थी। बिल्कुल जैसे उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हों और वंदे मातरम जैसा मुद्दा राजनैतिक दलों को मिल जाये तो दिल थोड़ा धक से रह जाता है।
मैं जानता था कि मेरे पांच वर्षिय बेटे को भिंडी से चिढ़ है मगर उसकी मां हमेशा इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेती है और उसके बाद जो कुछ भी होता है उससे डिनर का स्वाद तो खराब होता ही है।
आज फिर वही हुआ। मेरे बेटे ने बोल दिया “मुझे अच्छी नहीं लगती, मैं नहीं खाऊंगा”। बिल्कुल जैसे मुल्ले बोल देते हैं ” हमारे धर्म के खिलाफ है हम नहीं गायेंगे” अब उसकी मम्मी ने उसे समझाना शुरु किया, बेटे हरी सब्जियां शरीर के लिये अच्छी होती हैं, हमें जरूर खानी चाहियें मगर वो नहीं माना। अब उसकी मम्मी ने ऎलान किया ” देखती हूं कैसे नहीं खाता आज तो तुम यही खाओगे”। एकदम उस नारे की तरह “हिंदुस्तान में रहना होगा तो वंदे मातरम कहना होगा”।
“मेरी बनाई सब्जी नहीं खाता, इसे तो मां से प्यार ही नहीं है”। बात गंभीर हो रही थी।
मैंने बात को थोड़ा हलके करने की कोशिश करते हुए कहा “जाने भी दो, वो बेटी तो खा रही है ना”
पास ही बैठी बेटी ए आर रहमान की तरह मुस्कुराई।
मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा भिंडी खाये मगर जब उसकी मां उसे जबर्दस्ती खिलाने की कोशिश करती है तो मुझे अच्छा नहीं लगता।
इसीलिये जब भी डिनर में भिंडी बनती है, मेरा मन धक से रह जाता है…….
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