भई दो महानगरों के चिट्ठाकार मिलेंगे तो उसे महानगर चिट्ठाकार मिलन ही कहा जायेगा ना? तो मुम्बई से आये शशि सिंह जो “मान ना मान मैं तेरा मेहमान” कह कर आये और दिल्ली वालों के दिलों में घर कर गये। बहुत ही जीवंतता है साहब इनकी चमकती आंखों और भावों से भरे चहरे में, कुछ देर बैठिये इनके पास, एक ऊर्जा का संचार कर देते हैं।
मिलन के लिये निर्धारित स्थान क्नाट प्लेस के बरिस्ता पर मैं जरा देर से पंहुचा, तब तक अमित जी और सृजनशिल्पी जी के फोन आ चुके थे। जैसे ही दरवाजे पर पंहुचा, सबसे बाद की टेबल पर बैठे अमित जो शायद दरवाजे पर ही निगाह टिकाये हुये थे ने हाथ से ईशारा कर बुला लिया। आशा से अधिक लोगों को देख मन बहुत खुश हुआ। शशि जी, अमित जी, सृजनशिल्पी जी के अलावा उपस्थित थे प्रिय रंजन झा जिनका चिट्ठा है बिहारी बाबू कहिन, सरोज सिंह जी जिनका चिट्ठा है दिल्ली ब्लाग और अंग्रेजी के चिट्ठाकार माया भूषण जी जिनका चिट्ठा है अर्धसत्य।
अपने कीबोर्ड के सिपाही नीरज जी को न पा कर थोड़ी निराशा भी हुई। परिचय आदि के बाद बहुत ही खुशनुमा माहौल में हिंदी चिट्ठाकारिता के बहुत से आयामों के बारे में बातें हुई, खास कर हिंदी चिट्ठाकारिता के व्यावसायिक संभावनाओं पर। बाकायदा एक योजना पर भी सहमति बनी जिसके बारे में शायद शशि जी और सृजनशिल्पी जी विस्तार से लिखेंगे।
बातचीत के साथ साथ फोटो भी लिये गये। कोई १२.३० बजे शुरू हुई मीटिंग अपने इस आकार में २.३०-२.४५ तक चली। इसके बाद हमने बरिस्ता को छोड़ दिया। शशि जी, प्रिय जी और सरोज जी ने विदा ली मगर मै, माया भूषण जी अमित जी और सृजनशिल्पी जी चल दिये क्नाट्प्लेस के प्रसिद्ध “काके दा होटल” में। भोजन के साथ साथ हमने चिट्ठाकारिता पर जुगाली भी जारी रखी।
खाने के बाद अब बारी थी कुछ पीने की तो हम लोग चल दिये केवेंडर्स जहां का जायकेदार ठंडा दूध बहुत ही प्रसिद्ध है। रविवार होने की वजह से जहां क्नाटप्लेस के बाहरी चक्र में वाहन आदि कम थे वहीं अंदरूनी चक्र में लोगों का तांता लगा हुआ था। मौके का फायदा उठा मैंने अमित जी से रास्ते में कंप्यूटर के बारे में कुछ तकनीकि जानाकरियां भी ले लीं। जायकेदार ठंडा दूध पी हम लोगों ने भी विदा ली।
१२.३० बजे शुरू हुआ महानगर हिंदी चिट्ठाकार मिलन आधा क्नाट प्लेस घूमने के बाद हिंदी चिट्ठाजगत के लिये नये सपने और आशाएं ले कर समाप्त हुआ ४.४५ पर ।
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