रीडर्स डाइजेस्ट पत्रिका ने मुंबई को अशिष्ट नागरिको का शहर बताया है। अपने चिट्ठाकारों ने इतना कुछ लिख दिया इस विषय पर कि पिछली अनुगूंज पर भी इतना नहीं लिखा। मेरा मानना यह है कि इस प्रकार के सर्वे वैज्ञानिक तरीके से नहीं कराए जाते इसलिए यह विश्वसनीय नहीं होते।
जब चुनाव के वक्त हमारे यहां सभी न्यूज चैनल वैज्ञानिक(?) तरीके से सर्वे कराते हैं तो भी ज्यादातर सर्वे गलत निकल आते हैं। रीडर डाईजेस्ट वालों को मुंबई के ग्राहक चाहिएं तो मुंबई की बात करते हैं, कभी हमारे गांव देहात की लट्ठमार होली और लट्ठमार बोली देखी नहीं उन्होने।
बात बात पर सॉरी या थैंक्यू कहने का रिवाज हमारे यहां वैसे भी नहीं है और हम इसे अशिष्टता नहीं मानते।
किसी समाज का मर्म उस समाज में रहने वाले ही जानते हैं, औपचारिकताओं में जीने वाला समाज नहीं है हमारा। कोई दोस्त जब बहुत दिनों के बाद मिले तो झट जा कर गले मिलने का रिवाज है हमारे यहां। मिलने से पहले यह नहीं सोचते कि गर्मी में आया है, पसीने आ रहे हैं और शरीर से दुर्गंध न आती हो।
कृष्ण के घर सुदामा आए तो झट भाग कर गये और गले लगा लिया, मैले कपड़े नहीं देखे। प्रोटोकोल भी नहीं सोचा। सत्तू छीन कर खा लिये।
क्या कृष्ण भगवान ने थैंक्यू कहा होगा सत्तू के लिये। “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू”। खींच कर अपने पास बिठा लिया, सैकरेटरी से नहीं कहा की जा कर स्वागत करॊ और मेहमानों के कमरे में ठहरा दो।
यह कृष्ण सुदामा हमारे समाज में अभी भी हैं। इन गोरे लोगों को क्या समझ।
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