कृष्णा टु सुदामा “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू”-२

अमित जी ने मेरी पिछली पोस्ट “कृष्णा टु सुदामा “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू” के जवाब में एक किस्सा दिया है कि किस प्रकार महिलाओं को बस में सीट देने के बाद आभार तक व्यक्त नहीं करतीं। अमित जी लिखते हैं पर बीते ज़माने की किसी महिला को यदि सीट दी जाती, तो आभार प्रकट करना तो दूर, वे तो बैठती भी ऐसे अकड़ के कि जैसे सीट दहेज में मायके से लाईं हों जिस पर उनका सर्वस्व अधिकार है!! होता तो कुछ नहीं पर ऐसी महिलाओं से बड़ी कोफ़्त होती कि एक तो इतना थका मांदा होने के बाद भी सीट दी और ऐसे ऐंठ के साथ उस पर बैठीं कि जैसे उन्होंने एहसान किया बैठ कर!!”

एक किस्सा मैं भी सुनाता हूं आपको कई साल पहले की बात है एक बार मैं शाम के समय ट्रेन से दिल्ली से रोहतक जा रहा था। साथ की सीट पर एक युवक सांध्य टाईम्स (दिल्ली में मिलने वाला एक सांध्य दैनिक) पढ़ रहा था। पढ़ते पढ़ते जब उसने पन्ना पलटा तो एक समाचार पर मेरी नजर गई “सुनील दत्त अस्पताल में” मैने कोतुहल से पूछ लिया “क्या हो गया सुनील दत्त साहब को? ” पता है क्या जवाब मिला “मैं के डाक्टर लग रया हूं?”

इस प्रकार के कई किस्से आप ने भी सुने होंगे। आपके द्वारा और मेरे द्वारा दिये गये इन किस्सों से यह तो स्पष्ट हो गया कि हम दोनो मानते हैं कि हमारे समाज का एक चरित्र यह भी है। अब आप बताईये जो बंदा सीधी सी बात का सीधा सा जवाब भी नहीं देता उस से थैंक्यू की उम्मीद कैसे कर सकता हूं। जो महिला ऎंठ के साथ यूं बैठे जैसे एहसान कर दिया उस से आप धन्यवाद की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

मगर हमारे महानगरों में जहां अभिजात वर्ग है वहां थैंक्यू और सॉरी की औपचारिकताएं बहुत हद तक निभाई जातीं हैं इस में कोई दो राय नहीं है।मैं तो इस से आगे बढ़ कर कह रहा हूं कि उन्हें मुंबई में ही अशिष्ट्ता दिख गई जहां व्यापक रूप से शिष्ट अभिजात्य वर्ग रहता है, हमारे देहात तो देखे ही नहीं। रीडर्स डाइजेस्ट वालों को हो सकता है कि हमारी लट्ठ्मार होली देख कर उस में भी हिंसा नजर आ जाए मगर उसमें छिपे प्यार को तो एक भारतीय ही समझ सकता है ना।

उपरोक्त कथा में जो एक हरयाणवी चरित्र नजर आता है उसे तो सिर्फ़ आप और हम ही समझ सकते हैं कोई विदेशी नहीं। हमारे पंजाब में माएं अपने बच्चों को बहुत प्यार से “मोया” (dead) कह कर बुलातीं हैं, मां के इस प्यार को एक पंजाबी ही समझ सकता है, इसे समझने के लिये हमें किसी विदेशी चश्मे की जरूरत नहीं है।

मुझे अपने समाज के इस चरित्र से कोई शिकायत नहीं है, इससे पलट मुझे यह चरित्र बहुत भाता है।

यहा कृष्ण को अपने सुदामा के सत्तू अभी भी उतने ही स्वादिष्ट लगते हैं।


Comments

8 responses to “कृष्णा टु सुदामा “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू”-२”

  1. नीरज दीवान Avatar
    नीरज दीवान

    सही है. समझ-बूझ का पाठ पढ़ाने की आवश्यकता औरों को नहीं. यहां देश मे कुछ खट्टे-मीठे अनुभव से ही तो ज़िंदगी का मज़ा मिलता रहता है.

  2. रमण कौल Avatar
    रमण कौल

    बिल्कुल सही कहा है। मुझे बहुत पहले पढ़ी भीष्म साहनी की एक कहानी याद आ रही है — “ओ हरामज़ादे”, जिस में परदेस से कई साल बाद अपने शहर लौटने पर एक व्यक्ति को सब कुछ बेगाना लगता है, पर जब अचानक उसे दूर से कोई गाली दे कर पुकारता है, तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। मुझे उस कहानी की तलाश है, यदि हो सके तो कोई उसे नेट पर डाल दें, वरना अगली भारत यात्रा में वह पुस्तक खोजनी पड़ेगी।

  3. Thankyou आपने इतना अच्छा किस्सा सुनाया । Sorry पिछली पोस्ट पर टिप्पणी नहीं दी । हमारे समाज में इन दोनों शब्दों का सरेआम प्रय़ोग कितना अजीब लगता है ।

  4. बस की सीट पर अपने साथ घटी भी सुना लेता हूँ, दिल वालों की दिल्ली की बात है। नया नया आया था दिल्ली का पानी अभी पिया नही था। गलती से ‘कृप्या महिलाओं और बुजुर्गों के लिये सीट छोड़ें’ का पालन कर बैठा। एक महिला (लड़की कहना ज्यादा उचित होगा शायद) अपने बाजू में खड़ी हुई तो मैने अपनी सीट छोड़ दी। थैंक्यू नही बोला उसका कुछ मलाल नही हुआ लेकिन मैडम दो वाली सीट में से एक सीट के आधे में खुद बैठी आधे में अपने लड़के दोस्त को बैठा दिया। बात यहाँ खत्म नही हुई, दूसरी सीट में बैठे जनाब ३-४ स्टेशन बाद उतर गये। उसके बाद वो दोनों जने पसर के बैठ गये अपने को पूछना तो दूर अपने साथ खड़ी एक बुजुर्ग महिला तक को नही पूछा। लेकिन हम को आगे के लिये सबक दे गये।

  5. जगदीश जी, टिप्पणी देनी थी तो पूरी कि पूरी छापते, काहे आधी अधूरी छाप कर अर्थ का अनर्थ किए दे रहे हैं? ;)

    मेरी टिप्पणियाँ यहाँ पढ़ें – 1, 2, 3

    मैं यह पहले ही कह चुका हूँ कि रीडर्स डाईजेस्ट वाले सर्वे पर खाक डालो, लेकिन जो विषय है आभार तथा खेद प्रकट करने का, उस पर बात करनी चाहिए।

  6. Jagdish Bhatia Avatar
    Jagdish Bhatia

    नीरज जी,
    मेरी भावना को समझने के लिये धन्यवाद।
    रमणजी,
    धन्यवाद, भीष्म साहनी की यह कहानी कभी मिली तो जरूर पोस्ट करूंगा।
    छाया जी धन्यावाद, खेद की बात तो यह है कि कई भारतीय भी हमारी इस भारतीयता को नहीं समझते।

    रत्ना जी, धन्यवाद, समाज के इस मर्म को समझने के लिये।
    तरुण जी धन्यवाद।

    अमित जी, आपकी टिप्पणी जहां थी और जैसे थी वहीं है, मैंने उससे कोई छेड़छाड़ नहीं की है। मैंने अपनी पिछली पोस्ट में जो कुछ कहा उसी को अधिक स्पष्ट करने की यहां कोशिश की है। क्षमा करें यदि मैं अपनी बात आप को समझा नहीं पाया। धन्यवाद।

  7. अमित जी, आपकी टिप्पणी जहां थी और जैसे थी वहीं है, मैंने उससे कोई छेड़छाड़ नहीं की है। मैंने अपनी पिछली पोस्ट में जो कुछ कहा उसी को अधिक स्पष्ट करने की यहां कोशिश की है। क्षमा करें यदि मैं अपनी बात आप को समझा नहीं पाया।

    अरे क्षमा माँग काहे शर्मिन्दा कर रहें हैं जगदीश जी। मेरे कहने का अर्थ था कि आपने अपनी पोस्ट में मेरी टिप्पणी का एक भाग छाप उस पर अपने विचार व्यक्त किए, लेकिन उस एक भाग से मेरी टिप्पणी का पूर्ण सार नहीं आता, लोगों पर एक गलत अर्थ प्रक्षेपित हो सकता है, इसलिए मैंने कहा कि पूरी टिप्पणी छापते(या उसका लिंक दे देते) और फ़िर उस पर अपने विचार व्यक्त करते तो मामला फ़िट बैठता। :D खैर कोई नहीं, मैंने अपनी टिप्पणियों के लिंक दे ही दिए हैं, जिसको जो समझना है समझता रहेगा!! ;)

  8. How do we know Avatar
    How do we know

    perfect!

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