जब प्राण तन से निकले

जब सिंधु ने यह पूछा कि आप ने कभी मौत के बारे में सोचा है तो मैं हैरान रह गया.
मैंने अपनी जिंदगी में कितनी ही मौतें देखीं मगर कभी अपने लिए ऐसा नहीं सोचा. इतने साल हो गये बीमा बेचते मगर कभी किसी को मौत के बारे में नहीं याद कराया.
मगर वो बड़ी मासूमियत से पूछती है आपने वो भजन नहीं सुना

इतना तो करना स्वामि जब प्राण तन से निकले
गोबिंद नाम लेके जब प्राण तन से निकले.

उसे तो मैंने डांट ही दिया, ऐसा नहीं सोचते. मगर मैं खुद सोचता रहा सारा दिन.
बचपन की वो बुढ़िया पङोसिन की मौत से लेकर दो साल पहले पिताजी का जाना एक एक कर सब दौड़ गया दिमाग के परदे पर. सोचता हूं सब कुछ लिख डालूं.
पता नहीं ब्लाग शुरू करने का यह तरीका ठीक है भी कि नहीं.

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Comments

2 responses to “जब प्राण तन से निकले”

  1. Pratik Avatar
    Pratik

    ब्लॉग आत्माभिव्यक्ति का साधन है। इसलिये जो मन में हो, लिखते जाएँ।

  2. धन्यवाद प्रतीक, मैंने शुरूआत कर दी है.