मैं, नीरज दीवान और पुस्तक मेला – भई वाह

आप इसे ब्लागर मीट कहें या कुछ और। आज का दिन बिताया मैंने और कीबोर्ड के सिपाही नीरज दीवान ने  पुस्तकों के मेले में।दिल्ली के प्रगति मैदान में पुस्तकों का मेला शुरू हुआ है, पहले के दिनों में जब मेरा ऑफिस क्नाट प्लेस में होता था तो इस प्रकार के मौके कभी नहीं छोड़ता था और ऑफिस से हाफ डे लेकर जरूर पंहुच जाया करता था मगर पिछले कुछ सालों से यह सब छूट सा गया था।

इस बार पुस्तक मेला शुरू हुआ तो मन में वहां जाने के लिये बेचैनी होने लगी। कल पूरा दिन काम की व्यस्तता के बीच बीच सोचता रहा कि घर जाकर नीरज दीवान को फोन करके आज इतवार के लिये पुस्तक मेले में चलने का कार्यक्रम बनाते हैं। घर आया तो आते ही बिटिया ने बताया कि नीरज अंकल का संदेश गुगल चैट पर आया था। शायद जब बिटिया ने कंप्यूटर चलाया तो गुगल चैट ऑटो लागईन हो गया था। देखा तो मुझे भी ओनलाईन मिल गये और झट से मैंने पुस्तक मेले में चलने का निमंत्रण दे दिया। एकदम से उनके मुहं से निकला “वाह”। जैसे उन्हें भी मन की मुराद मिल गई हो और आज एक बजे प्रगति मैदान के गेट न० सात पर मिलने का कार्यक्रम तय हो गया।

 

दिल्ली का प्रगति मैदान कई वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और इस प्रकार के मेलों के लिय बहुत ही बेहतरीन जगह है। हर वर्ष यहां नवंबर में अंतराष्ट्रीय व्यापार मेला लगता है। इस बार नवंबर से पहले ही यहां मेट्रो भी जाने लगेगी। बड़े बड़े वातानुकूलित हॉल और अंदर सैंकड़ों प्रकाशकों की हजारों लाखों किताबें।  देश भर के प्रकाशकों के सभी बड़े बड़े नाम उपस्थित थे। हिंदी साहित्य, विज्ञान, बाल साहित्य, अंग्रेजी उपन्यास, प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के लिये पुस्तकें, धार्मिक, प्रबंधन, योग, ओशो और जीवन में सफलता दिलाने वाली पुस्तकें। यूं लगा कि ज्ञान के मंदिर में ही पंहुच गये।

तीन घंटे तक पुस्तकों के सागर में गोते लगाते रहे और अपनी समझ से कुछ मोती भी अपने अपने लिये चुन लिये। मुझे याद था एक बार मेरे एक पोस्ट “कृष्णा टु सुदामा “थैंक्यू बड्डी, वैरी टेस्टी सत्तू”-२” पर रमन कौल जी ने इच्छा जताई थी कि  भीष्म साहनी की  कहानी  “ओ हरामज़ादे” अगर किसी को मिले तो नेट पर डाल दे।   वह किताब भी राजकमल प्रकाशन के स्टाल पर मिल गई और मैंने फट खरीद ली। तो अगर आपको यह कहानी पढ़नी है तो मेरी अगली पोस्ट का इंतजार करें।

पुस्तकों के हॉल से बाहर आकर हम लॉन में घास पर बैठ गये और सारी पुस्तकों को प्लास्टिक के थैलों से निकाल वहीं घास पर रख दिया जिस से अपनी अपनी पुस्तकें चुन सकें। अब शुरू हुईं हमारी बातें जो कि चिट्ठाकारी से शुरू हुईं और जिंदगी के निजी अनुभवों पर पंहुच गईं। निर्मल हृदय नीरज निर्मल घास पर पड़ीं किताबों की तरह खुलते चले गये। बातों बातों में दो घंटे और कैसे गुजर गये पता ही नहीं चला। इस प्रकार दो ब्लागरों की पुस्तकों के साथ भेंट समाप्त हुई।

अंत में आज खरीदी गई भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक से अमृता प्रीतम की एक कविता:

अम्बर की एक पाक सुराही

 बादल का इक जाम उठाये

 घूंट चांदनी पी है हमने

  हमने आज यह दुनिया बेची

 और एक दीन खरीद के लाये

 बात कुफ्र की की है हमने

 सपनों का एक थान बुना था

 गज़ एक कपड़ा फाड़ लिया

 और उम्र की चोली सी है हमने

 कैसे इसका कर्ज चुकाऊं

 मांग के अपनी मौत के हाथों

 यह जो जिंदगी ली है हमने।


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *