हमारा भारत 15 वर्षों के आर्थिक सुधार- कितनों को साफ पानी
हमारा भारत : यह एक विडंबना ही है कि पिछले 15 वर्षों में जहां हमारी अर्थव्यवस्था ने नयी नयी ऊंचाईयों को छुआ है वहीं इस अवधि में कृषि क्षेत्र लु्ड़कता चला गया। यह क्षेत्र इतनी बुरी तरह पिछड़ा कि इस वर्ष हमें रिकार्ड 60 लाख टन गैहूं आयात करना पड़ेगा। हमें बहुत जल्द जाग जाना होगा। कृषी क्षेत्र में सुधारों की तत्काल जरुरत है जिसमें भूमी सुधार, सिंचाई, किसानों को नयी तकनीक की जानकारी तथा ऋण शामिल है।
इस पर तुरंत ध्यान न दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। साठ प्रतिशत आबादी जो कि कृषि पर आधारित है का हिस्सा अर्थ्व्यवस्था में लगातार घटता चला जा रहा है जिससे देश में अमीरी और गरीबी में दूरी बढ़्ती चली जा रही है क्योंकि सेवा क्षेत्र में हो रहे तेज विकास के कारण मध्य वर्ग बहुत तेजी से विकास कर रहा है। यह सच है कि आर्थिक सुधारों ने लाखों पढ़े लिखे भारतीयों को लाभ पहुंचाया है मगर अभी भी बहुत बड़े वर्ग तक इसका असर नहीं पहुंचा है। हमारा भारत साफ पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं तथा शिक्षा इनके लिये सपना ही देख रहा है।
कुछ उदाहरण देखिये:
प्राईमरी स्कूलों के केवल 25% टीचर ही ग्रेजुएट है।
केवल 28 % स्कूलों में बिजली है तथा आधे से ज्यादा स्कूलों में दो से ज्यादा टीचर या दो से ज्यादा क्लासरूम नहीं हैं।
56% ग्रामीण घरों में बिजली नहीं है।
1,20,000 गांवों को अभी बिजली का बल्ब देखना बाकी है।
उड़ीसा के 80% गांवों में बिजली नहीं है।
देश में टीबी, एच आई वी मरीज तो बढ़ ही रहे हैं, कुपोषन के शिकार बच्चे तथा महिलायें भी बढ़ रही हैं।
केवल 38% हेल्थ सेंटरों के पास ही पूरा स्टाफ है तथा केवल 31% के पास इलाज के लिये जरूरी सामान।
पीने का पानी एक चौथाई ग्रामीणों की पहुंच से बाहर है।
मुम्बई की 54 % आबादी स्लम में रह्ती है।
एशिया के सबसे बड़े स्लम धारावी में जहां सूरज की रोशनी नहीं जाती क्योंकि घर एक दूसरे के इतने नजदीक बने है, जिसकी गलियों से आप बिना बांहों को सिकोड़े निकल नहीं सकते, जहां एक टायलेट को औसतन 1440 लोग इस्तेमाल करते हैं ऐसी जगह पर 10 X 10 की झोपड़ी का किराया 1500 रु महीना है।
फिर भी लोग गांवों को छोड़ छोड़ कर शहरों को पलायन कर रहे हैं और इन स्लम्स पर और दबाव बना रहे हैं।
अब बताइये गरीब क्या करे? उन गांवों मे रहे जहां न रोजगार है, न बिजली है, न पानी है, न शिक्षा और न स्वास्थ्य या शाहरों में आकर इन स्लम्स में रहे?
चीन ने जब आर्थिक सुधार शुरु किये उससे पहले अपने हर नागरीक को रोटी कपड़ा और मकान दिया। हम जो शहरों में कमा रहे हैं उससे शहर भी नहीं सुधार पा रहे, गांवों की तो बात ही क्या।
अब बताइये, हमारा भारत और हम क्या सही जा रहे हैं?
(लेख के आंकड़े बिजनेस टुडे के ताजा अंक से)
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