जैसा कि पिछली पोस्ट में आप सब ने इच्छा जताई है कुछ और पुरानी कतरनें यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। इससे यह कतरने यहां सुरक्षित भी हो जायेंगी। सब कुछ तब के राजनैतिक माहौल पर लिखा गया था इसलिये लेखों के संदर्भ भी बताने की कोशिश की है।
निम्न लेख जनसत्ता में 2 जून 1988 को छपा था। ध्यान रहे कि उस समय परिवहन मंत्री थे राजेश पायलट और प्रधान मंत्री राजीव गांधी भी पायलट रह चुके थे। बोफोर्स का शोर था और रामजेठमलानी राजीव गांधी से बोफोर्स पर सवाल पूछा करते मगर राजीव कोई जवाब न देते।
डीटीसी की हड़ताल का कोई और नतीजा बेशक न निकला हो, डीटीसी बसों से कंडक्टर की सीटें जरूर निकाल दी गई हैं। वही सीटें जिन पर बैठ कर कंडक्टर खुद को प्रधान मंत्री से कम नहीं समझते थे।
हालत यह थी कि बस स्टाप पर खड़े यात्री जेठमलानी की तरह कितने ही सवाल क्यों न करें मगर मजाल है जो उन्हें जवाब मिल जाये। बस पर कभी रूट नम्बर और गंतव्य स्थान सरकारी नीतियों की तरह स्पष्ट नहीं होता। इसलिये जैसे देश का पता नहीं चलता कि वह कहां जा रहा है उसी प्रकार बस का भी पता नहीं चलता कि वह कहां जा रही है।
मगर साहब अब तो आशियाने ही उजड़ गये। चलती बस में कंडक्टर को अपने पारंपरिक स्थान पर न देख कर ऎसा लगता है जैसे बिना सरकार के देश चल रहा हो और प्रधान मंत्री विदेशयात्रा पर गया हो। अब कंडक्टरों को पता चल गया होगा कि इस देश में किसी पायलट से पंगा ले कर नहीं रहा जा सकता। हमें तो डर है कि कहीं एक हड़ताल और हो गई तो बसों से ड्राइवर की सीट भी जाती रहेगी।
उस जमाने में एक गीत टीवी पर बहुत बजा करता – “मिले सुर मेरा तुम्हारा।” इसी की एक पैरोडी छपी 2 दिसंबर 1988 को जनसत्ता में:-
बोफोर्स से सौदा हो हमारा
तो घूस बने हमारा
धूस की नदिया
हर दिशा से
बह के ‘लोटस’ में मिले
डालरों का रूप लेकर
बरसें हलके हलके।
निम्न क्षणिकाएं छपीं 24 जनवरी 1991 को जनसत्ता में।
खाड़ी में इरान इराक युद्ध चल रहा था। कच्चे तेल की कमी थी। यहां प्रधान मंत्री थे चंद्रशेखर जो कि दाढ़ी रखते थे और अपने चालीस सांसदों की सरकार को किसी तरह थामे चल रहे थे। । दूरदर्शन पर शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित धारावाहिक आता था ‘चरित्रहीन।’
1
दूरदर्शन ने क्या गजब ढाया है
‘चरित्रहीन’ के स्थान पर
प्रधानमंत्री को
दिखाया है।
2
उनकी सरकार फिसल नहीं रही
जमी है,
तेल की कमी है।
3
वे दाढ़ी से त्रस्त हैं डोल गये
खाड़ी के संकट को
दाढी़ का संकट बोल गये।
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