चिट्ठाकार गीता

रात के डेढ़ बज रहे हैं, संजय इस समय भी धृतराष्ट्र को आंखों देखा हाल सुना रहे हैं। संजय बोले: जगदीश ने मुन्नाभाई अमेरीका में नाम की पोस्ट अभी अभी आईना पर पोस्ट की है और जब तक यह नारद पर पहुंचे एक बार फिर से पढ़ कर अशुद्धियों को ठीक कर रहे हैं। तभी उनकी नजर आईना पर दायीं ओर के विजेट पर पड़ी जहां इंडीब्लागजीन की साईट की आर एस एस फीड पहले से ही लगी है। वहां उन्होंने देखा कि अभी अभी एक नयी प्रविष्टी Precursor to the Polls, meet the IB 2006 nominees के शीर्षक से आयी है। मुन्नाभाई की वर्तनी को छोड़ झट जगदीश ने चटका ईंडीब्लागजीन की साईट पर लगा दिया है। जगदीश, संजय और धृष्टराष्ट्र तीनों की धड़कनें तेज हो गयीं|

माउस को स्क्रोल करके Best Indic Blog (Hindi) तक आते आते एक बार तो हाथ भी कांप गया था। सबसे पहले ‘आईना’ का नाम देख विश्वास न हुआ। सोचने लगे ‘आईना’ के नाम से हिंदी में शायद कोई और चिट्ठा भी होगा जो मेरी नजर में अब तक आया नहीं होगा। जगदीश ने चेक करने के लिये लिंक पर चटका लगाया तो सामने अपने ही ब्लाग को पाया जहां ‘मुन्नाभाई अमेरिका में’ बिना वर्तनियों की शुद्धी के विराजमान थे।

जगदीश ने बैकस्पेस दबाया और बाकी सूची देखने लगा। इसके बाद उस लिस्ट मे स्थित चिट्ठा जगत के ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, भाइयों को तथा मित्रों को देखा। उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर आईना लेखक जगदीश अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोकाकुल होकर बोले…

प्रतियोगिता क्षेत्र मे डटे हुए इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अङ्ग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है, तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमाञ्च हो रहा है ये जीतू भाई हैं, जिन्होंने मुझे अंगुली पकड़ कर ब्लाग बनाना सिखाया। ये फुरसतिया जी हैं, जिन्होंने नये नये पोस्ट लिखने को हमेशा उत्साहित और प्रेरित किया। ये रवि रतलामी जी हैं, जिनसे कभी तकनीकी ज्ञान लिया और कभी चिट्ठा लिखने का व्यावाहरिक ज्ञान लिया। ये सुनील जी हैं, जिनके चिट्ठे को पढ़ कर स्वंय पर ही गर्व होने लगता है। यह समीर भाई हैं, जिनकी टिप्पणी का इंतजार हर पोस्ट करने के बाद होने लगता है | ये मेरे दिल्ली के मित्र सृजनशिल्पी हैं जिन्होंने कई बार फोन पर छोटी छोटी बातों पर गाईड किया। ये प्रिय रंजन हैं जिनका लिखा एक बार ब्लाग पर पढ़ते हैं तो अगले दिन समाचार पत्र में भी दोबारा जरूर पढ़ते हैं।

हाथ से माउस गिर रहा है, और मानिटर की स्क्रीन धुंधली हो रही है तथा मेरा मन भ्रमित सा हो रहा है; इसलिये मैं खडा़ रहने में भी समर्थ नही हो पा रहा हूँ।
हे कृष्ण तुम कहां हो? एक जरा सा महाभारत हुआ तो तुम ने अर्जुन को पूरा गीता का ज्ञान दे दिया। अब जब एक तरफ इंडीब्लागीस जैसा प्रतिष्ठित अवार्ड है और दूसरी तरफ मेरे अपने ही बंधू बांधव। मुझको इस दुविधा से कौन निकालेगा? कहां हो प्रभू !


Comments

6 responses to “चिट्ठाकार गीता”

  1. ghughutibasuti Avatar
    ghughutibasuti

    बिल्कुल सही कहा है संजय जी ने । वह कहते हैं ना बारह साल में घूरे के भी दिन फिरते हैं । भई हम तो इस प्रतियोगिता के कायल हो गए हैं । अब हमारी भी कुछ कीमत है। आइए और हमारे चिट्ठे पर टिप्पणी कीजिए, जो अधिक टिप्पणी करेगा हमारा वोट ले जाएगा ।
    घुघूती बासूती
    ghughutibasuti.blogspot.com

  2. जगदीश भाई,
    आपकी प्रविष्टि इस साल के इन्डीब्लॉगीज के लिए सबसे मुफ़ीद प्रविष्टि थी। आप इस वर्ष की नायाब खोज हो। आपकी मुन्नाभाई सीरीज को पढने के लिए मै अकेला ही नही, सैकड़ो अन्य लोग भी इन्तज़ार करते है।

    आप अच्छा लिखते हो, लगातार लिखते रहो। भविष्य को आपसे बहुत उम्मीदें है।

  3. dhurvirodhi Avatar
    dhurvirodhi

    गुरुभाई (क्योंकि जीतू भाई आपके गुरु हैं, और कुछ शिक्षा इन्होंने हमें भी दे डाली.),

    आपके ब्लाग के नामांकन पर अति प्रसन्नता हुई, और उससे भी अधिक प्रसन्नता इस बात पर की आप के मुन्नाभाई जब अमेरिका पहुंचे तो उन्होंने इस नाचीज़ को भी काबिले-ज़िक्र समझा.

    ये तो वही बात हुइ की,

    “तेरे संग हम भी सनम मशहूर हो गये”

    अपनी मशहूरी में हमें शरीक करने का शुक्रिया.

  4. जगदीश भाई, जिंदाबाद. खबर आ गई, आप तो जीत रहे हो. इस बात का अंदाजा तो सभी को है. आप किसी के प्रतिद्वन्दी तो हो ही नहीं सकते, क्योंकि यह कोई प्रतिस्पर्धा वाली बात ही नहीं हो रही है. आप का बेहतरीन लेखन अपने आप में एक मिसाल है. रमन भाई ने भी यह मजाक में कहा है कि अब गुरू, भाई, चाचा, ताऊ कोई नहीं है, सब प्रतिद्वन्द्वी हैं। :) इसे सिरियसली मत ले लेना और बस उनकी इस सिरियस बात का ख्याल रखना: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। ” इसका यह अर्थ है यह सब वोट माँगना छोड़कर लिखने में मन लगाओ, वही काम आयेगा. यह सब मांगा चूँगी का काम हम पर छोड़ो, हम मांग आयेंगे, आप इसके चलते व्यथित न हों, वरना हमारा दिल दुखेगा. :)

    इतने समझाने पर भी अगर खड़े रहने में समर्थ नहीं पा रहे हो और अभी भी स्थिती वही है कि “मुझको इस दुविधा से कौन निकालेगा? कहां हो प्रभू ! तो निश्चिंत रहो, हम कहीं नहीं गये हैं, यहीं है अभी. ज्यादा विकार की स्थिती में इसमें भी नाम वापिसी की सुविधा है, मगर उसे न इस्तेमाल कर लेना, बकौल अटल बिहारी यह अच्छी बात नहीं :)

  5. यदि जीतोगे तो इंडिक अवार्ड प्राप्त करोगे, यदि हारोगे तो साथियों की सहानुभूति और प्यार।

    अतः हे पार्थ तुम केवल कर्म करो फल की चिन्ता मत करो।

  6. जगदीश भाई एक सुझाव है साइडबार में गूगल का जो लिंक है, उसे Google.Com से बदलकर Google.co.in/hi कर लें ताकी आपके ब्लॉग पर आने वालों को गूगल भारत के हिन्दी पृष्ठ का पता लग सके।

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