लगभग जा चुकीं सर्दियों की दोपहर में क्नाट प्लेस के फिर से नये बने सेंट्रल पार्क पर जब आज दिल्ली के हिंदी चिट्ठाकार मिले तो शायद दिल्ली में यह अब तक की सबसे बड़ी और सबसे लंबी चली हिंदी चिट्ठाकार मीट थी।
क़ैफे क़ॉफी डे में हमारी मीटिंग तय थी मगर शुरू में थोड़ा कन्फ्यूजन हुआ क्योंकि एक ही क्षेत्र में तीन क़ैफे क़ॉफी डे एक साथ थोड़ी थोड़ी दूरी पर बने हैं। इस कन्फ्यूजन में मैथिली जी एक जगह इंतजार कर कर के चले गये। हम सब को इस बात का बहुत अफसोस हुआ।
पहुंचने वाले चिट्ठाकारों में मेरे अलावा थे
नीलिमा
नोटपैड
अमिताभ
सृजनशिल्पी
मसिजीवी
अमित
अविनाश
भूपेन
मसिजीवी बहुत ही जीवंत और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी हैं। मुझे अफसोस है कि मैंने उनके चिट्ठे को बहुत अधिक नहीं पढ़ा। अविनाश बोले कम, सुना ज्यादा। भूपेन जितना तीखा लिखते हैं, उतना ही धीरे और मीठा बोलते हैं। सभी नये चिट्ठाकारों को देख लगा कि हिंदी चिट्ठाकारिता का भविष्य बहुत अच्छा है।
एक डेढ़ घंटा क़ैफे क़ॉफी डे में बैठने के बाद हम लोग खुले सेंट्रल पार्क में आ गये। हालांकि ज्यादातर लोग पहली ही बार मिले थे पर खुले हुए मौसम की तरह बहुत ही खुल कर बाते हुईं। बहुत से सवाल पूछे गये और बहुत सी बातों पर चर्चा हुई। हमारी कोशिश रही कि नये चिट्ठाकारों को और अच्छी तरह जानें और साथ ही उन्हें भी अपने हिंदी चिट्ठाजगत के बारे में बतायें। किस प्रकार सामुहिक और निस्वार्थ कोशिशें हुईं अभी तक हिंदी चिट्ठाजगत को एक परिवार की तरह चलाने में । चिट्ठाजगत के भविष्य को ले कर सभी लोग काफी उत्साहित लगे।
करीब चार बजे काफी लोग विदा हुए मगर मैं, सृजनशिल्पी जी, अमिताभ और अमित टिके रहे साढ़े छः बजे तक।
थोड़ी कन्फ्यूजन के साथ शुरू हुई मीटिंग आकाश में रुई से तैरते बादलों और हरी घास की कोमलता के अहसासों के साथ समाप्त हुई। उम्मीद है कि कोमलता का यह अहसास हमेशा याद रहेगा।
चिट्ठाकार मिलन के फोटो यहां नोटपैड पर देख सकते हैं
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