जी नहीं जनाब हम अपने उस इंटरव्यू की बात नहीं कर रहा हूं जो १०-१२ दिन पहले एनडीटीवी ने सुबह सुबह के समाचारों में दिखाया रहा। हम बात कर रहा हूं एनडीटीवी पर हमार बिलाग की। अरे बूझे कि नाहि? भई बात ये बा कि ए हमार एनडीटीवी ने अपने वेबसाईट ndtv.com पर बिलाग बनावे कि खातिर नई सेवा सुरू किये हैं, तो हमऊ सोचे, या मौका बा इन अंग्रेजी बाबा लोगन को बतावे का कि हिंदी मा भी बिलागिंग आसान बा। तो हम भी बनाये लिये अपना बिलाग उहां।
पर भाई भोत सेंसरसिप बा उहां बिलाग पर। मालूम नाही कि इ सरकार कि सोच का असर बा कि मीडियापने की हेकड़ी या हर चीज को संपादित करबे की आदत।
सबसे पहले तो उहां रजिस्टर करबे कि खातिर गये तो भाई सब कुछ भरवा लिये, नाम, पिता का नाम, जन्म दिन (क्या पता फूलन का बुका भेजें बाबा लोग), पूरा पता (अरे बुका कहां भेजेगे?), फुनवा का नंबर आईएसडी, एसटीडी के साथ( हैप्पी बर्थ्डे कहबे कि खातिर )और भी भोत कुछ भरवा लिये। बस कुल गोतर का नाम नहीं पूछे और जे नहीं पूछे कि कौन सा रंग की जुराब पहने हो ।
अब साहब बिलाग सुरू किये तो एक ठो पोस्ट भी चटखाने की सोची। तो जैसन हमार हिंदी बलागन बिरादरी का रिवाज बा, हम स्बागत किये एनडीटीवी वालन का ई बिलागन की सेवा सुरू करने के लिये और बताये रहे कि हिंदी में लिखिये बहुत आसान बा और लगाये दिये चट्खा। पर ई का? हमार पोस्ट तो रख लिये एनडीटीवी वाले और सूचित किया कि आपका पोस्ट हम रख लिये है, जांचने के बाद अगर इस लायक समझा गया तो छाप दी जायेगी।
अब जैसा शोहेब भाई लिखे रहे, हम लोगन को आदत बा कि इहां अपनी पोस्ट को चटका लगाया और उहां झट झांकने लगते हैं कि कोई भाई टिप्पणी कर के गया की नाही। उहां तो भरोसा ही नहीं जो आप लिख दिये ऊ छपई कि नाही।
अब बिलागिग मा दूसरे का हस्तक्षेप कौन बरदास्त करेगा भाई? और कभऊ गलती से उहां अंग्रेजी बाबा लोगन को कोई हिंदी पढ़ने वाला न मिला तो अपनी पोस्ट तो गई रिसाईकल बिन मा।
न बाबा ना!!!!!!गुस्ताखी माफ!!!!
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