बंटवारा हिंदी कहानी

यह मेरा कहानी लिखने का पहला प्रयास है। बंटवारा हिंदी कहानी १९४७ के भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय की यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है।

बंटवारा हिंदी कहानी
बंटवारा हिंदी कहानी

बंटवारा – हिंदी कहानी

सावन भादो इस बार आसमान से ही नहीं बरस रहे थे, आंखों से भी बरस रहे थे। लाखों आदमी औरतें और बच्चे रो रो कर थक गये थे। खेत और घर ही नहीं परिवार के परिवार उजड़ रहे थे सीमा के दोनों तरफ। बँटवारे के बाद बनी वह सीमा जिसने भगवान दास को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। भगवान दास ने एक साल के सुभाष को पकड़े रखा और पहले सुरसती को गाड़ी पर चढ़ा दिया। भीड़ भरी गाड़ी में जब सुरसती खिड़की के पास पहुंची तो सुभाष को उसे पकड़ा छोटे भाई राम प्रकाश के साथ खुद भी भीड़ में जगह बनाते हुए गाड़ी पर चढ़ गए। 

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खिड़की से बाहर देखते सुरसती के मन में उठता धूंआ भी गाड़ी के इंजन के धुएं के साथ दूर क्षितिज तक जा रहा था। माता पिता ने सरस्वती नाम रखा था मगर गांव में सब सुरसती ही बुलाते थे। हवा में उड़ उड़ कर इंजन से कोयले के काले कण खिड़की से कई बार आ कर उसके चेहरे से टकरा रहे थे। वो सोचती कि कैसे इन हवाओं में कोई कालिख घोल कर चला गया है। 

मगर नन्हे से सुभाष को आस पास चलती हवाओं के रंगों से क्या लेना देना था। भूख और प्यास से रो रो कर वह इन्हीं हवाओं की थपकी में अपनी मां के सीने से लगा लगा सो गया था। 

भगवान दास और राम प्रकाश भीड़ में खड़े उमस और पसीने से परेशान थे। अचानक ट्रेन रुक गयी। परेशान हो कर सबने बाहर की तरफ देखा। कोई स्टेशन था। 

गाड़ी की घड़घड़ाहट से ज्यादा तेज अब सुरसती को अपने दिल की आवाज लग रही थी। मगर दस मिनट चलने के बाद गाड़ी धीमी होने लगी। सुरसती का दिल धक से थम गया। गाड़ी रुक गई थी। 

गर्मी से तंग आ कर भगवान दास प्लेटफॉर्म पर आकर खड़े हो गये थे। दूध नहीं मिला तो लस्सी ही ले आए सुभाष के लिए। मगर सुभाष लस्सी को मुंह ही नहीं लगा रहा था। एक बार फिर देखता हूं शायद कहीं दूध मिल जाए कह कर भगवान दास चले गए। इस बार लौटे तो दूध ले कर ही आए। ट्रेन पूरे दो घंटे से खड़ी थी, कोई कह रहा था कि पानी भर के चलेगी, मगर शायद आगे से सिगनल मिलने में कोई परेशानी थी।

“मैं थोड़ी कमर सीधी कर लूं। गाड़ी में खड़े खड़े बुरा हाल हो गया।” कह कर भगवान दास प्लेटफॉर्म की दूसरी तरफ सीढ़ियों के नीचे जा कर लेट गए। एक बार सुरस्ती का मन हुआ कि कहे कि मेरी नजरों से ओझल मत होना, मगर वहां धूप थी और सीढ़ियां कुछ पीछे जाकर थीं। सब लोग लंबा सफर पैदल पार कर स्टेशन तक आए थे और बुरी तरह से थके हुए थे। लेटते ही भगवान दास को नींद आ गई।

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आधे घंटे बाद जब गाड़ी चलने को हुई तो सीटी की आवाज जैसे सुरसती के सर के अंदर से हो कर गुजरी थी। गाड़ी चल पड़ी मगर भगवान दास का दूर तक कुछ पता नहीं था। गाड़ी के पहिए जैसे पटरियों पर नहीं सुरसती के सीने पर चल रहे थे। राम प्रकाश इसी उधेड़बुन में खड़े रहे कि भाभी और भतीजे को छोड़ कर भाई को बुलाने के लिये उतर जाऊं तो कहीं ये भी अकेले ना हो जाएं।  

बादल घिरने लगे थे। सुरसती जैसे किसी तूफान से गुजर रही थी। गाड़ी की पटरियों के साथ साथ जैसे उसका सब कुछ पीछे छूटता चला जा रहा था।

गाड़ी की घड़घड़ाहट से ज्यादा तेज अब सुरसती को अपने दिल की आवाज लग रही थी। मगर दस मिनट चलने के बाद गाड़ी धीमी होने लगी। सुरसती का दिल धक से थम गया। गाड़ी रुक गई थी। 

“गार्ड साहब क्या हुआ?” बाहर से आवाजें जैसे टुकड़ों में उड़ती हुई आ रहीं थीं। “गलत लाइन पर आ गई है गाड़ी, वापिस स्टेशन पर जाएगी।” अचानक बाहर बूंदा बांदी शुरू हो गयी। सुरसती की आंखों में तो जैसे बांध ही टूट पड़ा। 

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गाड़ी उल्टी दिशा में चलने लगी जैसे उस बंटवारे की लाइन को मिटाती जा रही हो जो सुरसती को अपने मन पर खिंची हुई महसूस हो रही थी। सुरसती की खूशी का ठिकाना ही नहीं था।


Comments

2 responses to “बंटवारा हिंदी कहानी”

  1. वाह जी, बहुत-2 बधाई। नियमित लिखें। शुभकामनाएँ।

    1. Jagdish Bhatia Avatar
      Jagdish Bhatia

      धन्यवाद रवि जी।

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