365 दिन, 110 पोस्ट, 876 टिप्पणियां, लगभग 20,000 हिट्स (16000 वर्डप्रैस पर और 4000 ब्लॉगस्पॉट पर), ढेर सारे दोस्त और बहुत सा प्यार!!
धन्यवाद। चिट्ठाकारिता के अपने अनुभवों और भावनाओं पर मैं जीतू जी को दिये अपने पांच जवाबों में पहले ही बहुत कुछ लिख चुका हूं। आज बस यही कहना चाहूंगा कि यहां के अनोखे अनुभवों को पूरी तरह शब्दों में लिख पाना बहुत ही कठिन है।
यहां जो भी प्यार और भाईचारा है वह उन लोगों की वजह से है जो कि सरोज जी के शब्दों में “अभावों के दिनों से” हिंदी चिट्ठाकारी से जुड़े हैं। एक साल में मैंने देखा कि अलग अलग तरह के बहुत से नये लोग आये और यहां के रंगों में रंग गये।
यहां गजब की आपसी समझ, एक दूसरे को सहयोग देने की भावना और परिपक्वता देखने को मिलती है। इस सामूहिक भावना को नये लोगों को समझने में कभी कभी कुछ समय लगता है। एक बात हिंदी चिट्ठाकरी में मैंने देखी कि केवल हिट्स लेने के लिये कभी किसी ने तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर सनसनी फैलाने के लिये नहीं लिखा। जहां भी चिट्ठाकार अपनी बात पर पूरी तरह आश्वस्त नहीं था उसे सहर्ष स्वीकार किया। जैसा की अनूप जी ने भी कहा कि चोरी की जो एक दो वारादातें हुईं वो भी बाहर वालों ने ही कीं।
यहां यदि समीर भाई इंडीब्लॉगीस का पुरस्कार जीतते हैं तो कोई दूसरा अपने को हारा हुआ महसूस नहीं करता। सभी को इस में अपनी और हिंदी चिट्ठाकारिता की जीत का अहसास होता है। किसी चिट्ठे पर मैंने पढ़ा था कि यहां सब ‘मैं’ की जगह ‘हम’ शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं।
पिछले एक वर्ष में मुझमें भी सामुहिकता के ‘हम’ की भावना कब आ गयी और ‘मैं’ कब गौण हुआ, पता ही नहीं चला। शायद सामुहिकता की यही भावना हमें वो बल देती है कि हमें आने वाले ज़लज़लों से कभी भी डर नहीं लगता।
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